Adhura

इश्क़ करूँ या इबादत?
दोनों की है एक ही आदत

बेवजह हर जगह तेरा ज़िक्र है
खो दिया ख़ुद को हूँ मैं, तेरी फ़िक्र है

हर साँस में तू, हर आस में तू
हर बात में तू, अल्फ़ाज़ में तू
अश्क में है चेहरा तेरा

फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?

कैसा ये कहर गया मुझपे ठहर?
ना सुबह का पता, ना साँझ का असर
कैसा ये कहर गया मुझपे ठहर?
ना सुबह का पता, ना साँझ का असर

है ये हक़ीक़त, तू ही इबादत
तेरे सिवा ना मेरी कोई आदत
इश्क़ था तुझसे बेपनाह

फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?

था कितना सुकूँ जब पास थी तू
ना मरने की तलब, था जीने का जुनूँ
था कितना सुकूँ जब पास थी तू
ना मरने की तलब, था जीने का जुनूँ

कैसी ये उलझन? कैसी ये उलफ़त?
मिट गई सारी मेरी ये हसरत
तुझसे जुदा मैं ना रहा

फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?
फिर क्यूँ मैं अधूरा रहा?



Credits
Writer(s): Kailash R. Das
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