Tu Hai Kahan

आज मेरे दिल में ना मिले
तेरी यादों से फ़ासले
तेरी बातों में हम गुमे थे
तेरे लफ़्ज़ों के सिलसिले पे

तेरी नज़रों की हर ख़्वाहिश
पूरी करने पे हम मरते थे
आज रात इस दूरी को ऐसे
एक मजबूरी तो ना बना दे

तो फिर ना ख़ाबों में आके भी मुझको तू यूँ ना सता
मेरे सोने पे भी तू ख़फ़ा है, यार, ये तो बता?
अधूरी सी रातों की छीनी है तूने जगह
तू है कहाँ?

जाने से अंजाने कब बनेंगे?
तेरे लम्हों से कब मैं जुदा?
कभी सोचता हूँ
के तूने शायद भेजी थी ये दुआ

तेरी बाँहों को कैसे भुलाऊँ?
इन सवालों से ला-जवाब
शायद दिल को तोड़ के
उसे कर दिया है permanently ख़राब

बस तेरी वजह से मैं ख़ाली से दिल में फिरूँ
तेरे आँसुओं की इबादत मैं करता रहूँ
बैठे ही रहके मैं बिस्तर में खिसका पड़ूँ
मैं क्या करूँ?

अब सोचूँ मैं बैठा और आँखें सितारों में
जवाब आने दे, रंगों में आ जाए ज़िंदगी
क्या तुझे इन रातों से पहली ही फ़ुर्सत मिली
मुझे क्या पता!



Credits
Writer(s): Awad Umar
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