Apna Bana Le

हैं क्यूँ ना ये नज़रें क़ाबू में?
जुगनू शामों से दिखते क्यूँ हैं ये सवेरे?
भूला सारा मैं अब अल्फ़ाज़ों में
ज़िक्र राहतों का तेरी घटाओं में है

जान-ए-जाँ, तेरी वफ़ाओं को ही
है ले जा रही हैं वफ़ाएँ मेरी
ठहरी कश्तियों का है डर ये कैसा
बहती जा रही हो अँधेरों में भी

अपना बना ले मुझको, सूरज मैं, चंदा सी तू
बाँट लेंगे आसमाँ (आसमाँ)
अपना बना ले मुझको, सागर मैं, कश्ती सी तू
घूम लेंगे जहाँ (जहाँ)

है जो भी ये सँवारे तेरे
दिल को मेरे नज़ारे तेरे
रातों में है तू बरकत सा ही
धूप में है तू अब्र सा भी

जान-ए-जाँ, तेरी अदाओं से ही
थम जाती हैं फ़िज़ाएँ मेरी
उलझी राहों का है डर ये कैसा
तुम जब हर्फ़ में, सज़ाएँ कैसी?

अपना बना ले मुझको, सूरज मैं, चंदा सी तू
बाँट लेंगे आसमाँ (आसमाँ)
अपना बना ले मुझको, सागर मैं, कश्ती सी तू
घूम लेंगे जहाँ (जहाँ)



Credits
Writer(s): Himanshu Arya
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