Do Raazi

दो राज़ी अँखियों ने ख़्वाब सजाया है
गुलशन, वादी, बूटा-बूटा सब महकाया है
दो राज़ी अँखियों ने ख़्वाब सजाया है

रोशन से रोशन अपना शहर हो
लगे ना किसी की नज़र
होकर ना गुज़रे जो तेरे क़दम से
ना हो कोई ऐसा सफ़र

एक-दूजे की नज़रों में हम हों
कट जाएँ यूँ हर पहर

दो राज़ी अँखियों ने ख़्वाब सजाया है
गुलशन, वादी, बूटा-बूटा सब महकाया है
दो राज़ी अँखियों ने ख़्वाब सजाया है, हो

राहों ने राहत की साँस ली है
जब से है तू, हमसफ़र
है ख़ुशनुमा सा, देखो, नज़ारा
ये भी है तेरा असर

धागों में मन के तुमको पिरो लूँ
रब की हो इतनी महर

सब महकाया है
दो राज़ी अँखियों ने ख़्वाब सजाया है



Credits
Writer(s): Aman Pant, Akhil Tiwari
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