Inaayat

आँखों में नहीं सही
साँसों में तो है
यादे माना कम बची
जितनी भी है
तेरी सही

तुमसे हैं हम
इनायत हैं या है सितम
तू...
तुमसे हैं हम
जफ़ाए हैं या हैं मरहम
क्यूँ...

नज़रे मिलायें यूँ
आँखें मींचे छाओं में जैसे आये धूप
हासिल मैं साहिल पे आया
कश्ती में बैठा दिल के टुकड़ों से
था जो सजाया

तुमसे हैं हम
इनायत हैं या हैं सितम
तू
तुमसे हैं हम
जफ़ाए हैं या हैं मरहम
क्यूँ

दर पे तेरे सजदा किया
ख़ुद आधा तुझे पूरा मैंने किया
दर पे तेरे सजदा किया
ख़ुद आधा तुझे पूरा मैंने किया



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