Arz
बस हो गया? या लड़ाई और बाकी है
जिंदा हैं, तो जुदाई और बाकी है
पीठ पीछे हुई तो सामने भी सही
उस ज़ालिम की बेवफ़ाई और बाकी है
एक बात के दस मतलब भी हो सकते हैं
पन्ना भर गया, सियाही और बाकी है
वो इश्क़ बेचता तो मैं ख़रीद भी लेता
मगर मेरे हिस्से की कमाई और बाकी है
किस किस ने धकेला है मुझे कटघरे में
उसने कहा है कि गवाही और बाकी है
मंज़िल सामने है, रास्ता दूर है
अब एक जनम की रसाई और बाकी है
लिखने की कोशिश में बैठा हूँ सुबह से
मगर रात की पढ़ाई और बाकी है
शायर बन गया, बिना ख्वाहिश के
मशहूर हो जाऊं तो तबाही और बाकी है
जो चाहो वो कहाँ मिलता है
मगर मिल जाए तो चिंता है
मेरा इश्क़ मुझसे बेहतर है
तू मेरा नहीं तो फिर किसका है?
तेरा असर कुछ ऐसा हुआ मुझपर
आईने में चेहरा तुझसा दिखता है
एक सवाल है के बताओ अब कौन
तुम्हारे साथ, तारे गिनता है?
कौन करता है तुम्हारी तारीफ़ें?
तुम्हारी शिकायतें कौन सुनता है?
इस बदन की माया भी अजीब है
जितना बाँधो उतना ही खुलता है
इस वीराने में ये ख़ुशबू कैसी?
लगता है, वो यहाँ से गुज़रा है
उम्र गुज़र गई, लेकिन तेरे बाद जाना
कि सूरज किस तरह उगता है
मुझसे लड़के ज़माने को बढ़े वो
ज़माने से लड़के मुझमें छुपता है
ये हुलिया, ये ग़म, ये शेर
मेरा कुछ नहीं, सब उसका है
मेरे बदन पे उसने आज भी नाख़ून कर दिया
आईने में पलट के देखूँ तो सुकून कर दिया
दुनियाँ की नज़रों से उसको छुपाता रहा अक्सर
अब वो छुप गयी है तो सबको मालूम कर दिया
मेरी ज़रूरत पे वो मेरे ख़िलाफ़ हो जाता है
उस बेरहम का नाम मैंने कानून कर दिया
बड़ी अजीब बात है, कोई उसे बताओ
दिल में ख़ून है और दिल का ही ख़ून कर दिया?
जिंदा हैं, तो जुदाई और बाकी है
पीठ पीछे हुई तो सामने भी सही
उस ज़ालिम की बेवफ़ाई और बाकी है
एक बात के दस मतलब भी हो सकते हैं
पन्ना भर गया, सियाही और बाकी है
वो इश्क़ बेचता तो मैं ख़रीद भी लेता
मगर मेरे हिस्से की कमाई और बाकी है
किस किस ने धकेला है मुझे कटघरे में
उसने कहा है कि गवाही और बाकी है
मंज़िल सामने है, रास्ता दूर है
अब एक जनम की रसाई और बाकी है
लिखने की कोशिश में बैठा हूँ सुबह से
मगर रात की पढ़ाई और बाकी है
शायर बन गया, बिना ख्वाहिश के
मशहूर हो जाऊं तो तबाही और बाकी है
जो चाहो वो कहाँ मिलता है
मगर मिल जाए तो चिंता है
मेरा इश्क़ मुझसे बेहतर है
तू मेरा नहीं तो फिर किसका है?
तेरा असर कुछ ऐसा हुआ मुझपर
आईने में चेहरा तुझसा दिखता है
एक सवाल है के बताओ अब कौन
तुम्हारे साथ, तारे गिनता है?
कौन करता है तुम्हारी तारीफ़ें?
तुम्हारी शिकायतें कौन सुनता है?
इस बदन की माया भी अजीब है
जितना बाँधो उतना ही खुलता है
इस वीराने में ये ख़ुशबू कैसी?
लगता है, वो यहाँ से गुज़रा है
उम्र गुज़र गई, लेकिन तेरे बाद जाना
कि सूरज किस तरह उगता है
मुझसे लड़के ज़माने को बढ़े वो
ज़माने से लड़के मुझमें छुपता है
ये हुलिया, ये ग़म, ये शेर
मेरा कुछ नहीं, सब उसका है
मेरे बदन पे उसने आज भी नाख़ून कर दिया
आईने में पलट के देखूँ तो सुकून कर दिया
दुनियाँ की नज़रों से उसको छुपाता रहा अक्सर
अब वो छुप गयी है तो सबको मालूम कर दिया
मेरी ज़रूरत पे वो मेरे ख़िलाफ़ हो जाता है
उस बेरहम का नाम मैंने कानून कर दिया
बड़ी अजीब बात है, कोई उसे बताओ
दिल में ख़ून है और दिल का ही ख़ून कर दिया?
Credits
Writer(s): Sanket Kumar Singh
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