Mirza

उड़ गए, बादलों के ही थे
बादलों में ही गुम हो गए
रह गए सपने तेरे-मेरे
उसने जो थे लिखे राहों में

के मिर्ज़ा तू बता, साहेबाँ को मेरा हाल क्या
कैसा है गुनाह, तू मेरे संग ना रह सका

मिर्ज़ा
कैसा है गुनाह, तू मेरे संग ना रह सका
मिर्ज़ा, आजा

डगर-डगर सूनी नज़र
सूना है जहाँ तेरा-मेरा
तुझको पढ़ूँ, तुझको लिखूँ
चर्चे तेरे ही तो हैं, मिर्ज़ा

आँखों के नज़्मों में तुझको पढ़ूँ
आदत, इबादत करूँ क्या
मुझको तू बता मनमर्ज़ियाँ
जाऊँ तो जाऊँ, मैं जाऊँ कहाँ?

कैसा है गुनाह, तू मेरे संग ना रह सका
मिर्ज़ा
कैसा है गुनाह, तू मेरे संग ना रह सका
मिर्ज़ा, आजा

मिर्ज़ा, हाँ, आजा



Credits
Writer(s): Shubham Kabra
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link