Zahir

ज़ाहिर करूँ मैं जो बातें, वो सुनो
क्यूँ मैं कहूँ उनको, ये भी तो जान लो
बावरी सी बन के फिरती हूँ यहाँ-वहाँ, इधर-उधर
जैसे हूँ मैं खोई तेरी यादों में बस
ज़ाहिर करूँ मैं जो बातें, वो सुनो

दिल बेफ़िज़ूल कहानी बुन रहा है
मंज़र नहीं, बस ये राहें चुन रहा है
बावरा सा बन के फिरता है यहाँ-वहाँ, इधर-उधर
अनकही तेरी बातों में ढूँढता है घर

लाखों दफ़ा मैं जो कह दूँ, फिर भी
बातों में बातें ये सारी यूँ घुल रही
क्यूँ ख़्वाह-मख़ाह इश्क़ हो गया है?
आँखों में तेरी मैं ख़्वाबों को बुन रही

ज़ाहिर करूँ मैं जो बातें, वो सुनो



Credits
Writer(s): Akanksha Sethi
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