Underground

भरी दोपहर में, तेरे वो शहर में
रब की मेहर से, खे़र ना किसी की
टुटेगी हड्डियां हर किसी की
मौत के भय में, जिंदगी पिसेगी
मिटेगी दिखेगी जिंदगी धूंधली
ढूंढेंगे मुंडे की जन्म कुंडली
भोंकेगी पिछे से कुत्तों की मंडली
बंद करेगा वो हो रही जो धांधली
घायल शिकारी वो, बंदा ना मामूली
अपनी गली का मोहम्मद अली
बेटे तू बच्चा वो ग्रेट खली
टाॅप पे देख के लौंडों की जली
तन से लगे वो थंगाबली
बल से लगे वो बाहुबली
वो आया तो मची है खलबली
यम के दम को गाड़ के
आया पाताल को फ़ाड़ के
मां के जो लाड़ले, बैठे है झाड़ पे
उधार के साहस पे चले है सांसें
छीन ले प्राण तेरे वो आराम से
लगे वो शांत है, चले वो शान से
लाया तूफान वो बांध के जंग ए मैदान में
आया वो हद्दों को लांघ के

नाम चले म्हारा दिल्ली ते मोहाली
बच के रहियो तू
हिदायत जनहित में ये जारी
सन् 71 के लौंडे
बापू ने पाले है शिकारी
इक दस्खत से म्हारे
चले सरकारें यहां सारी
नाम चले म्हारा दिल्ली ते मोहाली
बच के रहियो तू
हिदायत जनहित में ये जारी

दौड़ेगा घोड़े सा
तोड़ेगा फोड़ेगा, हाथ हथोड़े सा
हाथ तू जोड़ेगा, टाइम तू मांगेगा थोड़ा सा
तूझे नी छोड़ेगा, तूझे निचोड़ेगा
खिलाड़ी पहाड़ी पुराना शिकारी
है दारू उबाल के नसों में उतारी
अंहकार वाली बिमारी उखाड़ी
मदारी वो, नाचेगी दुनिया सारी
कालाबाजारी पे टेलेंट है भारी
स्टूडेंट तू, बेटे वो अधिकारी
अख़बारों के पन्नों में दिखे शिकारी
ना गांधी के नोटों में बिके शिकारी
आंखों में आंसू
फिर कैसे मैं हंसू मैं
कैसे मैं बांटू मैं लाखों में रोशनी
जीत की उम्मीद में
तैरती नांव में
ख़ून में डूबती
जीने की चाह में
मौत की राह में
दौड़ते भागते
हार की आह से
जीत की आस में
कोई ना ख़ास
विश्वास के साथ में
इतिहास को छोड़ के
अभ्यास को जोड़ के
तोड़ के खड़े जो रोकने
हां ठोकने, खड़े जो रोकने

नाम चले म्हारा दिल्ली ते मोहाली
बच के रहियो तू
हिदायत जनहित में ये जारी
सन् 71 के लौंडे
बापू ने पाले है शिकारी
इक दस्खत से म्हारे
चले सरकारें यहां सारी



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