Majra

खिल सी गई हूँ मैं आईने में जो देखूँ
ढूँढती हूँ नए नग़्मे, जिनसे हो जाऊँ रू-ब-रू
क्या माजरा है ये? हुआ ना क्यूँ कभी ऐसा?
क्यूँ मैं ख़ुद से ही आगे भागूँ, ना मैं रुकूँ?

सपने जिनमें खोईं सी आँखें
ये रातें, दिन भी ढल से ही जाते
मैं तारों को छू लौट आऊँगी फिर से वहाँ

दो पल का था लम्हा, मैंने ख़ुद को ही था खोया
नींद से अब हूँ जागी तो ढूँढा, मिला सिरा
है जाना, है समझा मैंने ख़ुद को यहाँ

सपने जिनमें बिसरी वो यादें
ये रातें, दिन भी ढल से ही जाते
मैं तारों को छू लौट आई हूँ फिर से यहाँ

मन तरंग सा बहने चला रोशनी मिली जहाँ
याद है, क्यूँ ये रास्ता मैंने है चुना?

सपने-, खोईं सी आँखें
ये रातें-, ढल से ही जाते हैं
सपने-, बिसरी वो यादें
ये रातें-, ढल से ही जाते हैं
मैं तारों को छू लौट आई हूँ फिर से यहाँ



Credits
Writer(s): Akanksha Sethi
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