Ganesh Katha

हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं
प्रथम पूज्य किस कारण तुमको देव बताते है, वो कथा सुनाते हैं
क्यों "गजानन", "गणराज", "विनायक" तुम्हें बुलाते हैं, वो बात बताते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

प्रथम वंदना तेरी, पहला पूजन तेरा है
हे, प्रथमदेव, सबसे पहले अभिनंदन तेरा है
हे वरदविनायक, हे विघ्नेश्वर, मृत्युंजय-नंदन
साँस-साँस में सिमरूँ तुमको, करता हूँ वंदन

तेरी कृपा जो पा जाऊँ तो भाग्य जगे मेरे
दूर सभी हो जाए पल में जीवन के अंधेरे
हे दुखभंजन, हे सुखकर्ता, इतनी दया करना
अगर कष्ट कोई आए तो सबके सब हरना

हम तेरी सुंदर लीला का गुणगान सुनाते हैं, तेरी महिमा गाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

हे गणराया, हे गज-बंदन, काटो भय-बंधन
कृपा करो, हे दीनदयाला, गौरी के नंदन
तेरा सुमिरन, तेरा वंदन है मंगलकारी
श्री गणेश कर गाते हैं तेरी महिमा प्यारी

ब्याह रचा कर पार्वती कैलाश पे आती है
कोई अपना सा लगे वहाँ, एक भी नहीं पाती है
सोच-सोच कर पार्वती ने मन में बात विचारी
नंदीगण सारे के सारे शिव के आज्ञाकारी

मेरे भवन में शिव जब इच्छा हो आते और जाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

मेरे कहने पर भी उनके गण बात मानते उनकी
कोई ऐसा जो मेरा हो, समझे मेरे मन की
इन्हीं ख़यालों में उलझी स्नान को जाती है
तब पार्वती अपने तन पर उबटन को लगाती है

फिर पार्वती ने अपने तन से उबटन दिया उतार
उसी वक्त उनके मन में एक कोन्हा नेक विचार
बना के पुतला उबटन का आकार दिया उसको
दोष-रहित, सब गुण संपन्न साकार किया उसको

बुद्धि-शक्ति में उसका कोई जोड़ ना पाते है, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

प्राण फूँक शक्ति ने शक्तिवान किया उसको
वीरों से भी वीर, बड़ा बलवान किया उसको
प्रणाम किया बालक बोला, "हे माता, आज्ञा दो
आदेश आपका ही मानूँगा, चाहे शपथ ले-लो"

माता बोली, "हे पुत्र, मेरे तुम द्वारपाल बन जाओ
कोई भीतर ना आ पाए, ये मेरा आदेश सुनाओ"
छड़ी हाथ में देकर बोली, "द्वार पे जम जाओ
मेरी आज्ञा है द्वारपाल तुम मेरे बन जाओ"

आज्ञा पाकर, द्वार पे आकर वो तन जाते है, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

कुछ क्षण के पश्चात आ गए शिव डमरू-धारी
द्वार पे देखा एक बालक को करते पहरेदारी
प्रवेश भवन में जैसे ही शिव करने जाते हैं
बीच मार्ग में खड़ा हुआ बालक को पाते हैं

बालक बोला, "महाराज, आज प्रवेश नहीं होगा
जब तक मुझको मेरी माँ का आदेश नहीं होगा"
शिव बोले, "मूर्ख, तुम हमको नहीं जानते हो
किस कारण रोक रहे हो? शायद, ना पहचानते हो

अब सुनो ध्यान से कौन है हम, तुमको बतलाते है", हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

"हम को सब कैलाशपति, शिव-शंकर कहते हैं
यही हमारा घर है, हम भी यही पे रहते है
अपने ही घर में जाने से मुझे रोक नहीं सकते
अकारण ऐसे तुम मुझको यूँ टोक नहीं सकते

क्या बुद्धि फिर गई जो तेरी रार पे आया है
या और किसी कारण से तू टकरार पे आया है?"
"महाराज, आप जो चाहे समझो, समझ आपकी है
लेकिन आदेश मुझे, ये आज्ञा मेरी माँ की है"

प्रवेश बंद है सबका वो फिर से दोहराते है, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

क्रोधित होकर चले गए शिव, नंदीगण आएँ
तर्क-वितर्क में उस बालक को हरा नहीं पाएँ
वापस आकर शिव-शंकर को बात सुनाते हैं
"बड़ा हठी बालक है" शिव-शंकर को बताते हैं

भोले शंकर बोले, "जाओ, जाकर उसे भगा दो
अगर ना माने तो उसको बलपूर्वक दूर हटा दो"
लेकर आज्ञा नंदीगण फिर द्वार पे आते हैं
हर प्रकार के छल-बल से बालक को मनाते हैं

सारे मिलकर भी उस बालक को डरा ना पाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

बोल उठा बालक, "तुम मुझको डरा ना पाओगे
मैं हूँ शक्ति का पुत्र, मुझे तुम हरा ना पाओगे
अगर ख़ैर चाहो अपनी तो लौट के जाओ तुम
जब तक ना आज्ञा मिले, लौट के वापस आओ तुम"

एक बार फिर शिव के गण वापस आ जाते हैं
शिव शंकर को आकर पूरी बात बताते हैं
"हे देव, पुत्र वो अपने को शक्ति का बताता है
बड़ा डराया, समझाया पर ना भय खाता है"

"बलपूर्वक दूर भगा दो" शिव आदेश सुनाते हैं, शिव आदेश सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

लौट के नंदी और गण वापस द्वार पे आते हैं
एक अकेला देख उसे ललकार लगाते हैं
"वक्त रहे हट जाओ, वरना पकड़ भगा देंगे
आदेश मान लो मेरा, वरना तुम्हें सज़ा देंगे"

बालक बोला, "एक अकेला देख डराते हो
मैं भी देखूँगा तुम अंदर अब कैसे जाते हो
अपनी संख्या और अपने बल पर इतराए हो
एक अकेले बालक पर इतने मिल आए हो

आ जाओ, हम भी पुत्र भवानी के कहलाते है", हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

युद्ध हुआ आरंभ, छड़ी लेकर बालक आया
सभी गणों को मार-मार के रण में खूब नचाया
सींग पकड़ कर नंदी को भी उठा-उठा पटका
अचानक आए नारद जी को देख लगा झटका

"ये कैसा संगराम, ये कैसी हार्य मची?" बोले
"अवश्य किसी संकट में है शिव शंकर भोले"
तुरत गए, नारायण और ब्रह्मा जी को लाए
पल में खबर फैला दी, सारे देव दौड़ आए

तब तक सारे नंदीगण रण हार जाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

शर्म के मारे नंदीगण के मुँह लटक आए थे
आखिर क्या कहते, बालक से हार के आए थे
अति उत्साही इंद्रदेव सबसे आगे आए
"चुटकी भर का काम, देव, जो आज्ञा हम पाए"

भोले बाबा बोले, "अच्छा, अब तुम ही जाओ
छल से, बल से कैसे भी कर उसको दूर भगाओ"
इंद्रदेव ने उस बालक पे चाल सभी चल दी
इंद्रदेव की सभी चाल बालक ने निष्फल कर दी

बालक के आगे इंद्रदेव भी ठहर ना पाते है, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

हाल देख कर इंद्रदेव का सारे घबराएँ
अब उस बालक से भिड़ने जाए तो कौन जाए?
ब्रह्मा और विष्णु बोले, "हम दोनों जाएँगे
छद्मवेश में जाकर उस बालक को मनाएँगे"

वेश बना तपसी का दोनों द्वार पे आते हैं
बड़ा जतन करके भी उसको हटा ना पाते हैं
बालक बोला, "तपसी हो, तपसी ही बने रहो
इधर-उधर की छोड़ के, जो कहना है वही कहो

अन्यथा लौट जाओ, आदरपूर्वक समझाते है", हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

चुपचाप लौट कर ब्रह्मा और विष्णु आ जाते हैं
"बड़ा हठी बालक है" आकर शिव को बताते हैं
"रूप काल का धार, द्वार पर बैठा है जम कर
हर भय से भयहीन, सजग हो बैठा है तन कर"

सुनकर शिव के नेत्र लाल-विकराल हो जाते हैं
सम्पूर्ण जगत से भूत-प्रेत, बेताल बुलाते हैं
सबको अपने संग लेकर युद्ध करने जाते हैं
देखा बालक को वही द्वार पर डटा हुआ पाते हैं

विकराल रूप धर भूत-प्रेत बालक को डराते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

मार-मार के डंड भूत-प्रेतों को भगा दिया
एक-एक कर सब देवों का छक्का छुड़ा दिया
बालक का डंडा घूम रहा ज्यों यम-डंड घूमे
या फिर रण में दुर्गा माता काली बन झूमे

भगदड़ ऐसी मची, युद्ध को छोड़ सभी भागे
किसी एक का ज़ोर चला ना बालक के आगे
शंकर ने त्रिशूल उठा बालक पे दे मारी
दूजे पल बालक की गर्दन को धड़ से उतारी

देव सभी शिव शंकर की जयकार लगाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

संदेश मिला जब पार्वती को पुत्र की मृत्यु का
क्रोध में भर बोली, "कर दूँगी नाश मैं सृष्टि का"
कुपित को गई गिरिजा, धरती-अम्बर काँप गए
अब निश्चित होगी प्रलय, देव-मुनि सारे भाँप गए

सब तरह-तरह के वंदन से माता को मनाते हैं
"किस कारण हम पर कुपित आप, हम समझ ना पाते हैं"
बोली, "जिसका वध हुआ वो पुत्र हमारा था
कोई भीतर ना आ पाए, आदेश हमारा था"

ये सुनकर सब के सब सक्के में आ जाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

"अगर पुत्र मेरा फिर से जीवित हो जाता है
प्रथम पूज्य का वर तुम सब देवों से पाता है
अन्यथा नष्ट कर दूँगी, मैं ब्रह्मांड मिटा दूँगी
एक-एक कर सबको मैं प्रचंड सज़ा दूँगी"

विचार किया सबने, मिलकर शिव शंकर से पूछा
महादेव ने दिखा दिया सबको फिर एक रस्ता
"देव सभी मिलकर उत्तर की ओर चले जाओ
मिले जो पहले शीश काट कर उसका ले आओ"

फिर देव सभी उत्तर दिशा की ओर सिधारते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

सबसे पहले सबने देखा एकदंत गजराज
शीश काट, अपने संग लेकर पहुँच गए कैलाश
पढ़कर वैदिक मंत्र शीश को धड़ से जोड़ दिया
पुनः जीवित बालक को ब्रह्मा-विष्णु-शिव ने किया

नाम रखा "गणराज", "गणपति", "गणाध्यक्ष", "गणराय"
सबसे पहले तेरा वंदन-पूजन दिया बताए
गणेश वंदना के बिन पूजा-पाठ नहीं होगा
जिस घर में ना रहे गणपति, ठाठ नहीं होगा

तब देव सभी वरदानों की बौछार लगाते हैं, हम कथा सुनाते हैं
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)

तब से जग में सबसे पहले पूजे जाते हैं
इसीलिए सबसे पहले गणेश मनाते है
मंगलमूर्ति नाम बड़ा ही मंगलकारी है
एक से एक है इनकी लीला, बड़ी ही प्यारी है

इनके सुमिरन से जीवन में विघ्न नहीं आता
विघ्नविनाशक इसीलिए तो इनको कहा जाता
हम एक-एक कर इनकी सारी लीला गाएँगे
सा-रे-गा-मा भक्ति पर हम सबको सुनाएँगे

जो श्री गणेश की लीला सुनते और सुनाते है, वो सुख ही पाते है
हम, गौरी सुत, गणेश, गजानन, तुम्हें मनाते हैं, हम शीश झुकाते हैं

(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)
(शिव-शक्ति के नंदन, हम करें तेरा वंदन)



Credits
Writer(s): Raju Rajasthani
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