Fakeera

कभी मैं उड़ता हूं फ़लक तक
कभी मैं डूबता हूं आफ़ताबी होकर सुनहरा
हवा के कांधे पे कभी मैं
कभी करता हूँ मैं गुलाबों के सिरहाने सवेरा
कभी मैं उड़ता हूं फ़लक तक
कभी मैं डूबता हूं आफ़ताबी होकर सुनहरा
हवा के कांधे पे कभी मैं
कभी करता हूँ मैं गुलाबों के सिरहाने सवेरा
फ़कीरा बन के मैं, फिरूं जिन रस्तों पर
मिलूं मैं जिस भी मुसाफ़िर से, उसे लत लग जाए
खुशियों की
फ़कीरा बन के मैं, फिरूं जिन रस्तों पर
मिलूं मैं जिस भी मुसाफ़िर से, उसे लत लग जाए
खुशियों की
मैं परछाई बादलों की हूँ
मैं गहरी शाम हूँ जो चाँदनी की चादर बिछाकर
अंधेरों को रोशनी से भर
नई उम्मीद की दिलों में इक लौ फिर से जलाकर
फ़कीरा बन के मैं, फिरूं जिन रस्तों पर
मिलूं मैं जिस भी मुसाफ़िर से, उसे लत लग जाए
खुशियों की
नदियों की कल-कल सा, हर पल गुनगुनाता हूँ
हवाओं के झोंकों में, ख़ुद को झुलाता हूँ
फूलों की ख़ुशबू सा, हर दिल में छाता हूँ
ज़िंदगी के रंगों को, यूँ ही लुटाता हूँ
यूं बूंदों में ओंस की मैने
छुपा रखी है अपनी ज़िंदगी, सतरंगी बनाकर
महकते ख़्वाबों से चुराता
हूँ, फिर मैं आसमां पे गुनगुनाता मौसम सजाकर
फ़कीरा बन के मैं, फिरूं जिन रस्तों पर
मिलूं मैं जिस भी मुसाफ़िर से, उसे लत लग जाए
खुशियों की
फ़कीरा बन के मैं, फिरूं जिन रस्तों पर
मिलूं मैं जिस भी मुसाफ़िर से, उसे लत लग जाए
खुशियों की
कभी मैं उड़ता हूं फ़लक तक
कभी मैं डूबता हूं आफ़ताबी होकर सुनहरा
फ़कीरा बन के मैं



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