Zikra Hota Hai Jab (Revival)

ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है

तुझको देखा है मेरी नज़रों ने
तेरी तारीफ़ हो मगर कैसे
के बने ये नज़र ज़ुबाँ कैसे
के बने ये ज़ुबाँ नज़र कैसे
ना ज़ुबाँ को दिखाई देता है
ना निगाहों से बात होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है

तू निगाहों से ना पिलाये तो
अश्क भी पीने वाले पीते हैं
वैसे जीने को तो तेरे बिन भी
इस ज़माने में लोग जीते हैं
ज़िन्दगी तो उसी को कहते हैं
जो बसर तेरे साथ होती है
ज़िक्र होता है जब क़यामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Daan Singh
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