Tujhse Bichhad Kar Znda Hain

तुझसे बिछड़ के ज़िंदा हैं
तुझसे बिछड़ के ज़िंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं

तुझसे बिछड़ के ज़िंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं

तपती दोपहरी में तेरी आहट दिल में आती थी
तपती दोपहरी में तेरी आहट दिल में आती थी
बारिश से एक दिल के अंदर रिमझिम राग सुनाती थी
अब हम और तपती दोपहरी

बीच में यादें ज़िंदा हैं

जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं

शाम को अकसर छत पे आ कर डूबता सूरज तकती थी
शाम को अकसर छत पे आ कर डूबता सूरज तकती थी
तो उसकी सब लाली, जानम, हाथ की मेहँदी लगती थी
मेहँदी तू नाराज़ ना होना

हम तुझसे शर्मिंदा हैं

जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं

हम रहते थे तुझसे लिपट कर तो कितना सच लगता था
हम रहते थे तुझसे लिपट कर तो कितना सच लगता था
सर्द अंधेरी रात में, जानम, एक दीया सा जलता था
अब तेरी बिरह की रातें

मिसल तेरे ताबिंदा हैं

जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं

तुझसे बिछड़ के ज़िंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं
जान, बहुत शर्मिंदा हैं



Credits
Writer(s): Salahuddin Pervez
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