Kuchh Tabiyat Hi

अब मैं जनाब Nida Fazli की ग़ज़ल पेश करने जा रहा हूँ

कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी

जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले
जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले
दिल जो बदला तो फ़साना बदला
फ़साना बदला
रस्म-ए-दुनिया को निभाने के लिए
हम से रिश्तों की तिजारत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी

दूर से था वो कई चेहरों में
दूर से था वो कई चेहरों में
पास से कोई भी वैसा न लगा
वैसा न लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन
फिर किसी से ये शिकायत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी

वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह
वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह
राह में कोई खिलौना न मिला
खिलौना न मिला
दोस्ती की तो निभाई न गई
दुश्मनी में भी अदावत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके
जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
कुछ तबी'अत ही मिली थी ऐसी



Credits
Writer(s): Nida Fazli, Chandan Dass
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