Ramcharitmanas

राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर
अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह
राम सरूप तुम्हार

सुनहु राम अब कहउँ निकेता, जहाँ बसहु सिय लखन समेता
जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना, कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना

भरहिं निरंतर होहिं न पूरे, तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गुह रूरे
लोचन चातक जिन्ह करि राखे, रहहिं दरस जलधर अभिलाषे

तिन्हके हृदय सदन सुखदायक, बसहु बंधु सिय सह रघुनायक

जस तुम्हार मानस बिमल हंसिनि जीहा जासु
मुकताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियँ तासु

प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा, सादर जासु लहइ नित नासा
तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं, प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं

कर नित करहिं राम पद पूजा, राम भरोस हृदयँ नहिं दूजा
चरन राम तीरथ चलि जाहीं, राम बसहु तिन्ह के मन माहीं

सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ
तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ

काम कोह मद मान न मोहा, लोभ न छोभ न राग न द्रोहा
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया, तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया

कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी, जागत सोवत सरन तुम्हारी
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं, राम बसहु तिन्ह के मन माहीं

स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात
मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात

गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा, जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा
राम भगत प्रिय लागहिं जेही, तेहि उर बसहु सहित बैदेही

जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई, तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु
जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु
सो राउर निज गेहु



Credits
Writer(s): Hridayanath Mangeshkar, Saint Tulsidas
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