Shri Saraswati Chalisa

जय जगजननी शारदा, जगत व्यापिनी देवी
आदिशक्ति परमेश्वरी, जय सुरनर मुनि सेवी

जय जय सरस्वती कल्याणी, जय जगदम्बे वीणा पाणी
तेरा नाम परम सुख दाई, तब महिमा त्रिभुवन मह छाई

विध्या बुद्धि सुमति गति जननी, कुमति निवारिणी मंगल करणी
जे ते ताल स्वर राग नर्तन, त्रिभुवन पूजित सब तव नंदन
वाद्यकला की तू ही माता, श्रवण करत जग जेहि सुख पाता
जहां लगी जगत ज्ञान विज्ञाना, सब तव समन सकल जग माना

काव्य कला की माँ कल्याणी, तभी कोविद वरकी तू वाणी
शेष सहस थड तब गुण गावे, नारद तब पद ध्यान लगावे
३५ कोटि स्वर्गकर देवा, करत सकल मिली तब पद सेवा
सनकादिक ऋषिगण दिगपाला, जपत सदा सब तेरी माला

सकल ज्ञान विज्ञान की धारा, कवी कोविद कर एक सहारा
तुम ही चारो वेद रचाये, अखिल विश्व को ज्ञान सिखाये
छओ शास्त्र नव ग्रन्थ पुनीता, तुम्ही सब कर अम्बर सयिता
रचयू अंब तुम सकल पुराना, पढ़ी पढ़ी पावत जग ज्ञाना

वाल्मीकि कर तुम्ही वाणी, वेद व्यास कर माँ कल्याणी
तेरी महिमा यह जग जाना, सूरदास भय सूर्य समाना
दिव्य दृष्टी जब तुम दीन्हि, सवालाख कविता रच दीन्हि
तुलसीदास शरण जब आये, तब प्रसाद शुचि मति गति पाये

रचेउ ग्रन्थ रामायण पावन, भक्ति सुमति संग गति सरसावन
शरण रहे कवी कालीदासा, भयऊ पूर्णसब मनकर आशा
वरचेउ ग्रन्थ अनेक महाना, भयऊ महाकवी सब जग जाना
जे ते गुण विद्याकर नाता, तुम्ही सकल गुणनकर माता

तुमरी महिमा अगम अपारा, जानिके सकहि बूढ़ बेचारा
शरणागत कवी अलख निरंजन, करहु मात मम भव भयभंजन
मोपर कृपा करहु जगदम्बे, देहु चरण रती सदगती अंबे
तब सुख आकर माँ तव चरणा, रहत चतुर नर गहीं तव शरणा

तब पग पंकज जो नित ध्यावे, सकल पदारथ जग मह पावे
क्षण भंगुर लक्ष्मी कर माया, बिन सहिसंग विनश्वर काया
जे नर मातु शरण तब आवे, ते नर अवसि परम पद पावे
तब प्रसाद भव संकट मोचन, हियकर उभरहि विमल सुलोचन

सुमिरत ब्रह्म कपाट खुली जाहि, निरथ ही ब्रह्म रूप जग माहि
तत्वज्ञान जब उपजहि मन में, आत्मब्रह्म निरतहि जन में
निर्खत मोहनी शाजट भागे, ह्रदय बीज सब सद्गुण जागे
मिलही अमर यश यही जग माहि, अंतब्रह्म पद निश्चय पाहि

ग्रसही नमतहि मानसिक रोगा, तब पद भक्त करत नहीं सोगा
अति अदभुत तब महिमा न्यारी, रहहि सदा संतुष्ठ पुजारी
जय जय सरस्वती सुखदात्री, विध्या बुद्धि कला की धात्री
देहु कृपा करि विमल विलोचन, ब्रह्म ज्ञान भव संकट मोचन

जेहि पद पूजत सकल मुनीशा, तेहि पद पूजिव तेऊ चालीसा
जे नर पढ़ी है नितचित लाई, लही है कला ज्ञान सुखदायी
पाठ करत सब विद्या आई, अंत समय सदगति मिल जाई

बसहु ह्रदय मह शारदा, सदा करहु कल्याण
देहु दया करिवास को, सदविद्या सद्ज्ञान



Credits
Writer(s): Goswami Tulsidas, Murli Mahohar Swarup
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