Bataao Kahan Milega Shyam

जय श्री श्याम
भक्तों, श्री कृष्ण के अनेकानेक भक्त हुएँ
उन्ही भक्तों में से एक नाम भक्त रसखान का भी आता है
१५५८ ईसवी दिल्ली में जन्मे सैयद इब्राहिम खान
कृष्ण भक्ति की कविताएँ लिखने के कारण कवि रसखान के नाम से प्रसिद्ध हुएँ
मुसलमान होते हुए भी
कृष्ण भक्ति और उनके प्रेम की अविरल धारा प्रवाहित करने वाले रसखान के सवैये तो सचमुच रस के खान हैं

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन

प्रस्तुत पंक्तियों में श्री रसखान जी ने
मनुष्य और पशु हर जन्म में ब्रज भूमि में ही रहने की प्रार्थना की है
ऐसी क्या बात हुई जो कृष्ण की भक्ति रस में बहकर एक खान रसखान बन गया?

एक दिन खान साहब पान खाने के उद्देश्य से एक दुकान पर जाते हैं
तभी अचानक उनकी नज़रें उस दुकान पर लगे बाल कृष्ण की छवि पर पड़ती है
उन्होनें उस पान वाले से पूछा, "भई, ये नन्हा सा बालक कौन है?
जिसका इतना कोमल शरीर, परंतु इससे पाँव में एक जूते तक नहीं
ये जिस जमीन पर खड़ा है वो कितनी खुरदरी है!"
तभी पान वाले ने कहा, "भई, खान साहब इसका नाम श्याम है और अगर इसकी इतनी ही फिक्र है
तो आप ही इसके लिए जूते बनाकर लाईए ना"
ये बात खान साहब के हृदय को छू गई
फिर क्या था, दूसरे ही दिन हाथों में नन्हे श्याम के चरण पादुका लिए वे उसी पान वाले से पूछते हैं:

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?

चरण पादुका लेकर सबसे
चरण पादुका लेकर सबसे पूछ रहे रसखान

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

पानवाले ने देखा कि यह तो सचमुच ही चरण पादुका लेकर आ गया
उसने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा:
"देखो भई, यह नन्हा बालक यहाँ तो तुम्हें नहीं मिलेगा, शायद कहीं और मिल जाए
जाकर किसी दूसरे से पूछते क्यूँ नहीं!"
उस नन्हे श्याम के सूरत को अपने दिल में बसाए खान साहब चल पड़ते हैं
और रास्ते में आने-जाने वाले हर व्यक्ति से पूछते हैं

वो नन्हा सा बालक है, साँवली सी सूरत है
बाल घुँघराले उसके, पहनता मोर मुकुट है

नैन उसके कजरारे, हाथ नन्हे से प्यारे
बाँध पैजनिया पग में, बड़े दिलकश हैं नज़ारे

घायल कर देती है दिल को
घायल कर देती है दिल को उसकी एक मुस्कान

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

तभी एक व्यक्ति जो रसखान जी को काफी समय से देख रहा ता
वो उनके पास जाकर सारी बातों को सुनने के पश्चात उनसे कहता है:

समझ में आया जिसका, पता तू पूछ रहा है
वो है बाँके बिहारी, जिसे तू ढूँढ रहा है

कहीं वो श्याम कहाता, कहीं वो कृष्ण मुरारी
कोई साँवरिया कहता, कोई गोवर्धन धारी

नाम हज़ारों ही हैं उसके
नाम हज़ारों ही हैं उसके कई जगह में धाम

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

उस भले व्यक्ति ने खान जी को वृंदावन जाने को कहा
फिर क्या था! मानो मुसाफ़िर को मंज़िल मिल गई हो
बिना खाए-पीए लगातार चलते हुए खान साहब वृंदावन में कृष्ण के मंदिर तक जा पहुँचते हैं
पागलों जैसी हालत, हाथों में जूते लिए
अन्य समुदाय के होने के कारण मंदिर के पुजारियों ने उन्हें अंदर आने से मना कर दिया
नन्हे श्याम से मिलने की आस लिए खान साहब फिर रो पड़े

मुझे ना रोको भाई, मेरी समझो मजबूरी
श्याम से मिलने दे दो, बहुत है काम ज़रूरी

सीढ़ियों पे मंदिर के, डाल कर अपना डेरा
कभी तो घर के बाहर, श्याम आएगा मेरा

इंतज़ार करते-करते ही
इंतज़ार करते-करते ही
सुबह से हो गयी शाम

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

खान साहब के मन में नन्हे श्याम से मिलने की आस थी
इसी विश्वास के साथ वे वहीं मंदिर की सीढ़ियों पर रात भर बैठे रहें

जाग कर रात बिताई, भोर होने को आई
तभी उसके कानों में कोई आहट सी आई

वो आगे-पीछे देखे, वो देखे दाँए-बाँए
वो चारों ओर ही देखे, नज़र कोई ना आए

झुकी नज़र तो कदमो में ही
झुकी नज़र तो कदमो में ही बैठा नन्हा श्याम

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

उस नन्हे श्याम की जैसी छवि भक्त खान जी ने अपने हृदय में बसाई थी
ठीक वैसी ही उन्होनें अपने सामने पाया

ख़ुशी से गदगद होकर, गोद में उसे उठाया
लगा कर के सीने से, बहुत ही प्यार लुटाया

पादुका पहनाने को, पाँव जैसे ही उठाया
नज़ारा ऐसा देखा, कलेजा मुँह को आया

काँटे चुभ-चुभ कर के घायल
काँटे चुभ-चुभ कर के घायल हुए थे नन्हे पाँव

बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?
(बताओ कहाँ मिलेगा श्याम?)

खान साहब ने श्याम के घायल पाँवों को देख रो-रो कर उनसे कहा:

"ख़बर देते तो खुद ही, तुम्हारे पास में आता
ना पग में छाले पड़ते, ना चुभता कोई काँटा"

परंतु उस मुर-मुकुट वंशी वाले ने मुस्कुराते हुए खान जी से कहा:

"छवि जैसी तू मेरी, बसा के दिल में लाया
उसी ही रूप में तुमसे यहाँ मैं मिलने आया"

गोकुल से मैं पैदल आया
गोकुल से मैं पैदल आया, तेरे लिए ब्रजधाम

भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)
भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)

इस प्रकार भक्त और भगवान का मिलन शायद ही देखने को मिले
जाकि रहि भावना जैसी, हरि मूरत देखि तिन तैसी
कन्हैया ने कहा, "हे भक्त, आपने मुझे बाल रूप में खाली पाँव देखा था
उन पथरिली रास्तों पर तभी तो मैं उसी अवस्था में आपसे मिलने के लिए
गोकुल से वृंदावन पैदल दौड़ा आया हूँ
आपके हाथों से चरण पादुका पहन मुझे त्रिलोक की सारी खुशियाँ मिल गईं"

श्याम की बातें सुनकर, कवि वो हुआ दीवाना
कहा, "मुझको भी दे दो अपने चरणों में ठिकाना"

तभी से खान जी श्याम नाम के भक्ति रस में ऐसे डूबे कि उन्हें रसखान के नाम से जाना गया

तू मलिक है दुनिया का, ये मैंने जान लिया है
लिखूँगा पद्य तेरे ही, आज से ठान लिया है

श्याम प्रेम रस भर साँसों नू
श्याम प्रेम रस भर साँसों नू, खान बना रसखान

भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)
भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)

काँटों पर चल कर के रखते
काँटों पर चल कर के रखते, अपने भगत का मान

भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)
भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)

भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)
भाव के भूखे हैं भगवान
(भाव के भूखे हैं भगवान)



Credits
Writer(s): Indranil Ray, Sunil Gupta Sonu
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