banjaara (ek villain)

जिसे ज़िन्दगी ढूँढ रही है
क्या ये वो मकाम मेरा है
यहाँ चैन से बस रुक जाऊँ
क्यूँ दिल ये मुझे कहता है
जज़्बात नये से मिले हैं
जाने क्या असर ये हुआ है
इक आस मिली फिर मुझको
जो क़ुबूल किसी ने किया है

हाँ, किसी शायर की ग़ज़ल
जो दे रूह को सुकूँ के पल
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर
नये मौसम की सहर
या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर

जैसे कोई किनारा
देता हो सहारा
मुझे वो मिला किसी मोड़ पर
कोई रात का तारा
करता हो उजाला
वैसे ही रोशन करे वो शहर

दर्द मेरे वो भुला ही गया
कुछ ऐसा असर हुआ
जीना मुझे फिर से वो सीखा रहा

हम्म, जैसे बारिश कर दे तर
या मरहम दर्द पर
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर
नये मौसम की सहर
या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर

मुस्काता ये चेहरा
देता है जो पहरा
जाने छुपाता क्या दिल का समंदर
औरों को तो हर दम साया देता है
वो धूप में है खड़ा खुद मगर

चोट लगी है उसे फिर क्यूँ महसूस मुझे हो रहा है
दिल तू बता दे क्या है इरादा तेरा

मैं परिंदा बे-सबर
था उड़ा जो दरबदर
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर
नये मौसम की सहर
या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है
जैसे बंजारे को घर
जैसे बंजारे को घर
जैसे बंजारे को घर
जैसे बंजारे को घर



Credits
Writer(s): Mithun Naresh Sharma
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