Khai Hain Chahat Ki

खाई हैं चाहत की क़स्में, तोड़ेंगे दुनिया की रस्में
लोगों से डर लगता नहीं, ये प्यार के हैं करिश्में
खाई हैं चाहत की क़स्में, तोड़ेंगे दुनिया की रस्में
लोगों से डर लगता नहीं, ये प्यार के हैं करिश्में
खाई हैं चाहत की क़स्में

खुल के मिलें, मिल के चलें, क्यूँ कुछ और सोचें, हाँ?
थाम लिया है दामन तेरा, चाहे जहाँ भी पहुँचें
छोड़ चले इस दुनिया को हम, मुड़ कर अब ना देखेंगे

खाई हैं चाहत की क़स्में, तोड़ेंगे दुनिया की रस्में
लोगों से डर लगता नहीं, ये प्यार के हैं करिश्में

जीने का अंदाज़ यही है, प्यार की धुन में जीना, हाँ
शाम-ओ-सहर, चारों पहर उल्फ़त की मय को पीना
सीख लिया है जीना हमने, लोग हमें क्या रोकेंगे

खाई हैं चाहत की क़स्में, तोड़ेंगे दुनिया की रस्में
लोगों से डर लगता नहीं, ये प्यार के हैं करिश्में



Credits
Writer(s): Rajesh Roshan
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