Sheesha - E - Dil Itna Na Uchhalo (From ''Dil Apna Aur Preet Parai'')

शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
ये कहीं टूट जाएगा, ये कहीं फूट जाएगा

शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
(शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो)
(ये कहीं टूट जाएगा, ये कहीं फूट जाएगा)
(शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो)

मचलती-झूमती ठंडी हवाएँ कहती हैं
तड़पती मौजों की चंचल अदाएँ कहती हैं
"सँवारो ज़ुल्फ़ को," काली घटाएँ कहती हैं
ये भीगी-भीगी सुहानी फ़िज़ाएँ कहती हैं
(तुम्हीं से आज तुम्हारी निगाहें कहती हैं)
(तुम्हीं से आज तुम्हारी निगाहें कहती हैं)

ओ-ओ, शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
(ये कहीं टूट जाएगा, ये कहीं फूट जाएगा)
(शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो)

नज़ारे हो गए क़ुर्बान इन नज़ारों पर
मचल के आ गईं लहरें भी अब इशारों पर
अदा से तैरते फिरते हैं हम तो धारों पर
करेंगे प्यार का जादू जवाँ बहारों पर
(ये कहने आई हैं १०० मछलियाँ किनारों पर)
(ये कहने आई हैं १०० मछलियाँ किनारों पर)

ओ-ओ, शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
(ये कहीं टूट जाएगा, ये कहीं फूट जाएगा)
(शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो)

सँभालो होश कि दरिया का गहरा पानी है
ना डूब जाओ कहीं, बेख़बर जवानी है
जवाँ बहार किनारों पे आनी-जानी है
ज़रा ख़याल रहे, दिल अजब निशानी है
(अभी तो प्यार की दुनिया तुम्हें बसानी है)
(अभी तो प्यार की दुनिया तुम्हें बसानी है)

ओ-ओ, शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो
(ये कहीं टूट जाएगा, ये कहीं फूट जाएगा)
(शीशा-ए-दिल इतना ना उछालो)



Credits
Writer(s): Jaikshan Shankar, Jaipuri Hasrat
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