Gulzar Speaks - Tarkieb

मुझको भी तरकीब सीखा कोई यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है की ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया
या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो

तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे

मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे



Credits
Writer(s): Gulzar
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link