Ishq Mein Ghairat / Yaar Ko Maine

आपकी तालियों के जोश कर सुन कर
मुझे एक लतीफ़ा याद आ रहा है
एक गाने वाले थे
उनके पड़ोसी को भी एक दिन जोश आ गया
तो वो उनके घर आए
तो बोलने लगे कि साहब
आपका बाजा चाहिए
थोड़ी देर के बाद उनकी बीवी आई
और बोली कि आपका
तबला भी चाहिए
और जब वो जाने वाली थी
तो गाने वाले ने पूछा कि साहब
आप के घर में कोई महफ़िल है
या कोई गाने का Programme है
वो बोली नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है
हम ज़रा जल्दी सोना चाहते हैं आज
(laughs)
अब लीजिए पंजाबी के इस दौर निकले
और फिर से आ जाएँ
ग़ज़ल के इस दौर में

बहुत सी फ़रमाइशें हैं
सब से पहले
दो ग़ज़लें पेश कर रहे हैं
दोनों हमर्दी ग़ज़लें हैं
चित्रा जी गा रही हैं
'सुदर्शन फ़कीर' की ग़ज़ल
और मैं गा रहा हूँ
'ख़्वाजा हैदर अली आतिश' की ग़ज़ल

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने

यार को मैंने मुझे यार ने
यार को मैंने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर ताल-ए-बेदार ने सोने न दिया
यार को मैंने मुझे यार ने

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने

एक शब बुलबुले बेताब के जागे ना नसीब
एक शब बुलबुले बेताब के जागे ना नसीब
पहलू-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने न दिया
यार को मैंने मुझे यार ने

उनसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
उनसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने

रात भर की दिल-ए-बेताब ने बातें मुझसे
रात भर की दिल-ए-बेताब ने बातें मुझसे
रंज-ओ-मेहनत के गिरफ़्तार सोने न दिया
यार को मैंने मुझे यार ने

रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने
यार को मैंने मुझे यार ने
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने
यार को मैंने मुझे यार ने
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने



Credits
Writer(s): Chitra Singh, Jagjit Singh
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