Introduction / Din Ko Bhi Itna Andhera - Live

दोस्तों, अब मैं आपको एक ऐसी ग़ज़ल सुनाने जा रहा हूँ
जो कि मैं आज पहली बार गा रहा हूँ
उम्मीद है आपको पसंद आएगी
ग़ज़ल, जनाब Zafar Gorakhpuri की लिखी हुई है
और ग़ज़ल में ख़ास बात ये है
कि जिस अंदाज़ से शायर ने ग़ज़ल के रदीफ़ को निभाया है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है
ग़ौर फ़रमाइए

दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में (वाह! वाह! बहुत बढ़िया!)
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना...

ग़म थका-हारा मुसाफ़िर है, चला जाएगा
ग़म थका-हारा मुसाफ़िर है, चला जाएगा
कुछ दिनों के लिए ठहरा है मेरे कमरे में (क्या बात है! वाह!)
कुछ दिनों के लिए ठहरा है मेरे कमरे में

साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना...

सुबह तक देखना, अफ़साना बना डालेगा
सुबह तक देखना, अफ़साना बना डालेगा
सुबह तक देखना, अफ़साना बना डालेगा
तुझको एक शख़्स ने देखा है मेरे कमरे में (वाह! वाह! वाह! बहुत अच्छे!)
तुझको एक शख़्स ने देखा है मेरे कमरे में

साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना...

दर-ब-दर दिन को भटकता है तसव्वुर तेरा
दर-ब-दर दिन को भटकता है तसव्वुर तेरा
हाँ, मगर, रात को रहता है मेरे कमरे में (ओए! क्या बात है!)
हाँ, मगर, रात को रहता है मेरे कमरे में

साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना...

ग़ज़ल का मक़्ता अर्ज़ है
ग़ौर फरमाइएगा

चोर बैठा है कहाँ, सोच रहा हूँ मैं, Zafar
चोर बैठा है कहाँ, सोच रहा हूँ मैं, Zafar
चोर बैठा है कहाँ, सोच रहा हूँ मैं, Zafar
या कोई और भी कमरा है मेरे में (वाह! बहुत अच्छे! बहुत अच्छे!)
या कोई और भी कमरा है मेरे में (बहुत बढ़िया)

साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में

दिन को भी इतना...



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