Apni Aazadi Ko Hum

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं

हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
सैकड़ों क़ुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है
मुस्कुराकर खाई है सीनों पे अपने गोलियाँ
कितने वीरानों से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है
ख़ाक में हम अपनी इज़्ज़त को मिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं

क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले वफ़ा के सामने
आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अम्न का दुश्मन कोई
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते

वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएँगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख़ बदलते जाएँगे
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दार-ए-वतन
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएँगे
एक धोखा खा चुके हैं, और खा सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
(वन्दे मातरम)

हम वतन के नौजवाँ हैं, हमसे जो टकराएगा
वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जाएगा
वक़्त के तूफ़ान में बह जाएँगे ज़ुल्मों-सितम
आसमाँ पर ये तिरंगा उम्र भर लहराएगा
जो सबक बापू ने सिखलाया, भुला सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं



Credits
Writer(s): Naushad, Shakeel Badayuni
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