Kaaton Se

काँटों से यूँ उलझे, ख़ुद ही बन गए हैं शूल
है ये अगर हक़ीक़त, कैसे करें इसे क़ुबूल?
बेजान सा इस दिल में अब जज़्बात ना है उसूल
काँटों से यूँ उलझे, ख़ुद ही बन गए हैं शूल

(उद्धम् सरणम् गच्छामि, धम्मम् सरणम् गच्छामि)
(संगम सरणम् गच्छामि, उद्धम् सरणम् गच्छामि)

नहले पे तो है दहला यहाँ, जहाँ की यही है रीत
कलंदर बने, सिकंदर हुए, किसी की हुई है ना जीत

बहाके लहू मिलेगा सुकूँ, इंसान की है ये भूल
काँटों से यूँ उलझे, ख़ुद ही बन गए हैं शूल

ये जीवन तो है एक अंधा कुआँ, जो डूबा सो डूब गया
एक ज़ख़्म जो भर जाता है, उभरता है फिर एक नया

टूटी कली जो डाल से बनती नहीं है वो फूल
काँटों से यूँ उलझे, ख़ुद ही बन गए हैं शूल
बेजान सा इस दिल में अब जज़्बात ना है उसूल

(उद्धम् सरणम् गच्छामि, धम्मम् सरणम् गच्छामि)
(संगम सरणम् गच्छामि, उद्धम् सरणम् गच्छामि)



Credits
Writer(s): Shyamraj Dutta
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