Likh Gaye Dastan - From "Kiriti O Kalo Bhromor"

लिख गई दास्ताँ सरगोशियाँ
इक ग़ज़ल कह गई ख़ामोशियाँ

यादों के पुर्ज़े कुछ छूट के राहों में
इक हवा सुलगा गई चिंगारियाँ

लिख गई दास्ताँ सरगोशियाँ
इक ग़ज़ल कह गई ख़ामोशियाँ
ये ज़रूरी तो नहीं कि हर लहर को साहिल मिले
कितने अरमाँ बनके शम्मा किए हैं रोशन सिलसिले
हाँ, नशा कुछ आ रही है जले हुए चाहों में
दर्द की है अजब मदहोशियाँ, मदहोशियाँ

लिख गई दास्ताँ सरगोशियाँ
इक ग़ज़ल कह गई ख़ामोशियाँ
ता-उमर ज़र्रा-भर कुछ करम लौटाने को
और कहीं लम्हें बस हस्तियाँ भुलाने को
तजरबे यूँ सिमटी है अब चाँद ठंडी आहों में
रंजिशें अब लगे नादियाँ, नादियाँ

लिख गई दास्ताँ सरगोशियाँ
इक ग़ज़ल कह गई ख़ामोशियाँ



Credits
Writer(s): Debojyoti Mishra
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