Nikhalas Hasya Jis Dil Me

निखालस हास्य जिस दिल में बिना कोई जगतपेक्षा
अहो वह प्रेम पूर्णत्वी हो वंदन दादा निर्पेक्षा
सदा ही मुक्त हास्योल्लास नहीं वाणी में कोई पकड़
अहो अंतिम दशा निग्र्रंथ यथारथ ज्ञानपूर्णिमा
सभी के द्रव्य मन और भाव निरीक्षक देखकर जानें
फिर भी बाँधे न अभिप्राय वे अंतर मुक्ति में ही रहें
सदा वचनों में सौम्यता परम अवगाढ़ समकित से
मनुष्यों की बुद्धि से पर अपूर्व पूर्ण ज्ञानी वे
जो द्रव्य पूर्व भावों का वो फल दे समय जब आता
न चाहें तो भी आते हैं विचार ये मन की परवशता
जगत है पुदगली मेला है जीवमात्र पर आधीन
सभी संयोह है कर्ता व्यवस्थित शक्ति के आधीन
न करे दखल पुदगल में व्यवस्थित में न डालें हाथ
निरिक्षक ज्ञेय को जानें करें नहीं दूसरी पंचात
सभी का उलटा या टेढ़ा दिखे ज्ञानी को सब सीधा
करुणा रखते हैं हरदम है मुश्किल ज्ञानी परखना
विपरीत बुद्धि की शंका वे सुनते ग़ैबी जादू से
नहीं फिर भी दिया कभी दंड किया नहीं भेद मैं तू का
गज़ब है आपकी समता विचक्षण समय सूचकता
विरोधी सामने हो पर कभी भी दोष ना देखा
अहो निर्भेद प्रेमेश्वर अलौकिक मूर्त मोक्षेश्वर
निराकूल सिद्ध ज्ञानेश्वर अ मन है ज्ञान संगमेश्वर।
निखालस हास्य जिस दिल में बिना कोई जगतपेक्षा
अहो वह प्रेम पूर्णत्वी हो वंदन दादा निर्पेक्षा
अहो वह प्रेम पूर्णत्वी हो वंदन दादा निर्पेक्षा
अहो वह प्रेम पूर्णत्वी हो वंदन दादा निर्पेक्षा



Credits
Writer(s): Dada Bhagwan
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