Jaise Agnan Andhere

जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
ऐसा ही स्वरुप मुझको मिला है
ऐसा ही स्वरुप मुझको मिला है
मैं दादा शरण में हूँ आया
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा

ता ना ना ना धी न ता धी न ता ना दे रे ना
ता ना ना धी न ता धी न ता ना दे रे ना
ना दी र दी र दा ना तू न दी र दी र ता ना ता दे रे ना
ना दी र दी र दा ना तू न दी र दी र ता ना ता दे रे ना
ता ना ना धी न ता
ता ना ना धी न ता
ता ना ना धी न ता धी न ता ना दे रे ना

दस लाख बरसों में कभी कभार कोई आते हैं अक्रम ज्ञानी
हो हो आते हैं अक्रम ज्ञानी
त्यागा त्याग उनको न भावे
विचरे बन निमित्त कल्याणी
हो हो विचरे बन निमित्त कल्याणी
ऐसे ही ज्ञानी ए एम पटेल में
ऐसे ही ज्ञानी ए एम पटेल में ज्ञान स्वरूप हैं दादा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा

मैं कुछ ना जानूँ कहकर जिसने परम विनय जो दिखलाया
हो हो परम विनय दिखलाया
चरनों में झुक कर शीश नवाँकर ज्ञानी शरण में जो आया
हो हो ज्ञानी शरण में जो आया
ज्ञानी कृपा से दो ही घंटों में
ज्ञानी कृपा से दो ही घंटों में क्षायक सम्यक् उसने पाया
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा

नि सा सा रे रे सा सा नि रे रे नि सा
नि सा सा रे सा सा नि रे रे नि सा
प म म नि प प सा सा नि प म म रे सा
नि सा सा रे सा सा म रे रे नि सा
नि सा रे म प नि
नि सा रे म प नि
नि सा रे म प नि
सा नि प म

भटका हुआ मैं राही था जगका जिसका नहीं था सहारा
हो हो जिसका नहीं था सहारा
खुदसे ही खुद था अनजान मैं खुद खुद को नहीं पहचाना
हो हो खुद को नहीं पहचाना
उस अनजाने को दादा की करुणा ने
उस अनजाने को दादा की करुणा ने निज स्वरुप दिखलाया
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा

आसान हूई राह मोक्ष की जैसे ही दादा कृपा मैंने पाई
हो हो दादा कृपा मैंने पाई
चमका दूजका चाँद जहाँ थी अज्ञान अमावस अंधेरी
हो हो अज्ञान अमावस अंधेरी
भव भवके भटके नाविक को जैसे
भव भवके भटके नाविक को जैसे मिल जाए कोई खिवैया
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा

जिस राह राम महावीर चले हैं उस राह मैं बढ़ता जाऊं
हो हो उस राह मैं बढ़ता जाऊं
शाता अशातामें क्लेश कषायों में विचलित मैं हो ना जाऊं
हो हो विचलित मैं हो ना जाऊं
मुक्ति के प्यासे को महावीर ने जैसे
मुक्ति के प्यासे को महावीर ने जैसे मोक्ष का मार्ग दिखलाया

जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
जैसे अज्ञान अंधेरे में भटके हुए को मिल जाए ज्ञान उजियारा
ऐसा ही स्वरुप मुझको मिला है
ऐसा ही स्वरुप मुझको मिला है मैं दादा शरण में हूँ आया
मैं दादा शरण में हूँ आया
मैं दादा शरण में हूँ आया



Credits
Writer(s): Dada Bhagwan
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