Bhaar

डोली में लगते दो कंधे
अर्थी में लगते हैं चार

जीवन की ये कैसी माया
बिन रूह बदन है बोझिल भार

जिस तरह ये रीत अनोखी
उसी मानिंद है अपना प्यार

तुम बिन मैं इक ख़ाली काया
तड़पा फिरता यूँ बारम्बार



Credits
Writer(s): Beybaar Prashant
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