Alag Hone Ki Rasm

शादी की तमाम रस्में बनायीं
तमाम रिवाज तय किए
कौन क्या करेगा, कैसे होगा
किसे कितना देना है

मगर क्यों न बनाई
अलग होने की रस्म
कोई रिवाज तो बनाया होता
कोई क़ायदा पढ़ाया होता

सफ़ेद सिंदूर की रस्म ही रख देते
जिसे पैरों में लगाया जाता

जिस चतुराई से हथकंगन
की गाँठें खोली थीं और
दो दफ़ा अंगूठी जीती थी
हल्दी के पानी में तुमने,
उसी चतुराई और दम से
काटनी होती वही अंगूठी

कच्ची मेहँदी धोते हम तुम
और साथ उसी के धोने होते सात वचन

वो सात जन्मों की कसमें, जो खायीं थीं
मुँह में उंगली डालकर
निकालनी होतीं बाहर

मंगलसूत्र के मोती पर ऐड़ी रखकर
कुचलकर
बिना पीछे मुड़े
चले जाना होता
या लेने होते उल्टे फेरे जल के चारों तरफ़
और किसी हवनकुंड में शादी अल्बम
और सम्भाल कर रखे कार्ड
की आहुति देनी होती

सभी परिवार जन
हाथों में जले हुए चावल लेकर
खड़े होते, हाथ जोड़ते
पंडित ज़ोर से कहता,
"बधाई हो, अलगाव सम्पन्न हुआ"

कुछ तो रिवाज
कोई तो रस्म बनाई होती
कुछ तो मुश्किल होती जाने में

जो इस तरह मुझे छोड़कर
आसानी से चले गए तुम
लिखकर फ़क़त एक काग़ज़ पर
"इट्स नॉट वर्किंग ऐनीमोर"



Credits
Writer(s): Beybaar Prashant
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link