Gali Koi Apni Na Shahar Apna Koi

मय से मुमकिन नहीं क़रार कहीं
शहर में घूम-फिर के आए नहीं
साक़िया, तेरा दम ग़नीमत है
एक भी दोस्त दिल का साफ़ नहीं

होश से हमने यूँ निबाह किया
जैसे कोई बड़ा गुनाह किया
मय-कदे में वो उम्र हाथ आई
मदरसे में जिसे तबाह किया

गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?
गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?

ना मिलता अगर मय-कदा तो बताओ
कहाँ ज़िंदगी से मुलाक़ात करते?
गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?

मसाइल थे कुछ इस क़दर ज़िंदगी के
मसाइल थे कुछ इस क़दर ज़िंदगी के
कभी ज़ख़्म भी गिन नहीं पाए अपने
कभी ज़ख़्म भी गिन नहीं पाए अपने

तमन्ना थी अपने से मिलते किसी दिन
कभी ख़ुद से भी दो घड़ी बात करते
गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?

हुई ख़ैर, निकले जो दैर-ओ-हरम से
हुई ख़ैर, निकले जो दैर-ओ-हरम से
ठिकाना दिया मय-कदे की गली ने
ठिकाना दिया मय-कदे की गली ने

कहाँ जा के हम काटते धूप के दिन?
कहाँ ख़त्म हम अपनी बरसात करते?
गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?

उठाए हुए बोझ सा दिल पे कोई
उठाए हुए बोझ सा दिल पे कोई
भटकते रहें शहर की भीड़ में हम
भटकते रहें शहर की भीड़ में हम

यहाँ कौन अपना था अपने अलावा
ज़फ़र, किससे इज़हार-ए-हालात करते?
ना मिलता अगर मय-कदा तो बताओ
कहाँ ज़िंदगी से मुलाक़ात करते?

गली कोई अपनी ना शहर अपना कोई
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?
कहाँ दिन बिताते? कहाँ रात करते?



Credits
Writer(s): Pankaj Udhas
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