Baatein Hain Na / Bikhre Pade Hain Ghas Pe Ansoo

बातें हैं, ना मुफ़लिस ही, ना दौलत वाले
पीकर जो मज़ा लेते हैं क़िस्मत वाले
जो होश की दलदल में हैं वो क्या जाने
इस पार से किस पार गए मतवाले

दुनिया है हवा, सारा भरम है, साक़ी
एक आग है, ये उम्र अलम है, साक़ी
पानी की तरह पाक हैं, लेकिन
एक दिन मिल जाएँगे मिट्टी में, ये ग़म है, साक़ी

बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले
ये चाँदनी का दुख है, मगर, तू समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले

रातों को टूटते हुए तारों का ग़म ना कर
रातों को टूटते हुए तारों का ग़म ना कर
रातों को टूटते हुए तारों का ग़म ना कर

पलकों पे उसकी याद के जुगनू, समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले

सब जगमगाते ख़ाब फ़िज़ाओं में उछाल दे
सब जगमगाते ख़ाब फ़िज़ाओं में उछाल दे
सूरज के एहतराम में पहलू, समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले

काली घटा को खुल के बरसना नसीब हो
काली घटा को खुल के बरसना नसीब हो
काली घटा को खुल के बरसना नसीब हो

यारब ज़मीं की प्यास, अगर तू समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले
ये चाँदनी का दुख है, मगर, तू समेट ले
बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले

बिख़रे पड़े हैं घास पे आँसू, समेट ले



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