Kahaniyan

कहानियाँ, सुनाये ये बदज़ुबाँ
जवानियाँ, भटकती हैं बेज़ुबाँ
निशानियाँ, मोहब्बत की हैं कहाँ
हैवानियाँ, करता है ये जहाँ

ये क्या रिवाज़ है?
ये क्या गुनाहों का दौर है?
लफ़्ज़ों में कुछ है
मन में बसा कुछ और है

मेरे मन की भोली सुबह
है कहाँ? है कहाँ?
है कहाँ? है कहाँ?

पैरों के नीचे ज़मीं
है घायल बिछी हुई
चेहरों पे चेहरे लगे
है सारी मतलब की दोस्ती

साँसें डरी-डरी
हैं बिस्तर के नीचे छिपी
तन्हाई बस पास है
दूर कहीं ये जाती नहीं

ये क्या रिवाज़ है?
ये क्या नकाबों का दौर है?
मायने गुम हैं
होठों पे शोर शोर है

मेरे मन की भोली सुबह
है कहाँ? है कहाँ?
है कहाँ? है कहाँ?
है कहाँ? है कहाँ?
है कहाँ? है कहाँ?



Credits
Writer(s): Pranay Dwivedi
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