Waqt

तुम कितना जानते हो मुझे?
तुम कितना जानते हो वक़्त को?
तुमने सोचा था जो थामेंगे डोर को
पंख काट बैठे परिंदों के वो
तुम कितना जानते हो परिंदों को?

उनकी परवाज़ उनके पंखों की राख से पूछो
उनकी तारीफ उनके पंखों से भी करो
मेरे धुंए को कमरे के बाहर जाने दो
मेरे घावों को धूप लगाने दो

मेरे भ्रम को ख़ाक हो जाने दो
मेरे इरादों को बिखर जाने दो

वक़्त ही है मुफ्त पास में
मुझ को बिक जाने दो बाज़ार में
मुझको उन जैसा ही बिक जाना है
मुझको उन जैसा ही दिख जाना है
तुम कितना जानते हो बाज़ार को?

मैंने कहानियों को बेच के जान ली है
जान जला के ये आवाज़ खरीदी है
मैंने दोस्ती का मोल लगाया है
मैंने रिवाजों से पर्दा उठाया है

मुझको झरने के नीचे होंठ लाने दो
मुझको दरिया में तुम बह जाने दो

मेरे हाथों से वक़्त फिसल रहा है
मेरी कलाइयों से दर्द निकल रहा है
मेरे हाथों से वक़्त फिसल रहा है
मेरी कलाइयों से दर्द निकल रहा है
मेरे हाथों से वक़्त फिसल रहा है
मेरी कलाइयों से दर्द निकल रहा है
मेरे हाथों से वक़्त फिसल रहा है
मेरी कलाइयों से दर्द निकल रहा है



Credits
Writer(s): Pranay Dwivedi
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