Soch Samajhkar Hosh Mein

सोच-समझ कर होश में...
सोच-समझ कर होश में जीना छोड़ दिया
सोच-समझ कर होश में जीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया

सोच-समझ कर होश में जीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया
सोच-समझ कर होश में...

मैंने सारे मौसम तेरे नाम लिखे
मैंने सारे मौसम तेरे नाम लिखे
मैंने सारे मौसम तेरे नाम लिखे

अपने लिए सावन का महीना छोड़ दिया
अपने लिए सावन का महीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया
सोच-समझ कर होश में...

धूप को बादल कह दूँ तो ये प्यास बुझे
धूप को बादल कह दूँ तो ये प्यास बुझे
धूप को बादल कह दूँ तो ये प्यास बुझे

लेकिन मैंने झूठ को जीना छोड़ दिया
लेकिन मैंने झूठ को जीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया
सोच-समझ कर होश में...

मेरे अंदर एक ही बाग़ी था वो, निज़ाम
मेरे अंदर एक ही बाग़ी था वो, निज़ाम
मेरे अंदर एक ही बाग़ी था वो, निज़ाम

जिससे डर के मैंने पीना छोड़ दिया
जिससे डर के मैंने पीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया

सोच-समझ कर होश में जीना छोड़ दिया
साक़ी, मैंने नाप के पीना छोड़ दिया
सोच-समझ कर होश में...



Credits
Writer(s): Pankaj Udhas, Nizamuddin Nizam
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