Pathar Pe Gira Sheesha

पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से
पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से
आई ना सदा लेकिन...
आई ना सदा लेकिन टूटी हुई धड़कन से
पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से

क्या साथ मेरा देगी, हाथों की जो रेखा है
मैंने तो इन आँखों से कुछ और ही देखा है
लो आज हुए रुख़सार सुख-चैन मेरे मन से

पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से
आई ना सदा लेकिन...
आई ना सदा लेकिन टूटी हुई धड़कन से
पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से

वो प्यार की देवी थी, क्या ज़ुल्म किया उसने
फिर अपने पुजारी से मुँह फेर लिया उसने
रूठी नज़र आती है अब जान मेरे तन से

पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से
आई ना सदा लेकिन...
आई ना सदा लेकिन टूटी हुई धड़कन से
पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से

मीठा है, बहुत मीठा हँसता हुआ ज़हर उसका
हाँ, चाहने वाला है अब शहर का शहर उसका
हर रोज़ मिले जाकर वो इक नए साजन से

पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से
आई ना सदा लेकिन...
आई ना सदा लेकिन टूटी हुई धड़कन से
पत्थर पे गिरा शीशा और टूट गया छन से



Credits
Writer(s): Talat Aziz, Qateel Shifai
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