Kaise Kate Din - From "Swarg"

कैसे कटे दिन? कैसे कटी रातें?
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें

कैसे कटे दिन? कैसे कटी रातें?
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें

मुझ को तो रोज़ आती थी, हमदम, तुम्हारी याद
आ के मिले हो आज तुम कितने दिनों के बाद
मुझ को तो रोज़ आती थी, हमदम, तुम्हारी याद
आ के मिले हो आज तुम कितने दिनों के बाद

जब याद तुम्हारी आती थी
मैं चोरी-चोरी रोती थी
खोई रहती थी ख़यालों में
हो, ना जगती थी, ना सोती थी

कैसे कटे दिन? कैसे कटी रातें?
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें

तुम से मैं दूर जा के भी कितने क़रीब था
बस कुछ दिनों के वास्ते रूठा नसीब था
तुम से मैं दूर जा के भी कितने क़रीब था
बस कुछ दिनों के वास्ते रूठा नसीब था

इस धरती से उस अंबर तक
इक चेहरा तुम्हारा दिखता था
जब सपने तुम्हारे आते थे
ओ, मैं प्यार भरा ख़त लिखता था

कैसे कटे दिन? कैसे कटी रातें?
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें

कैसे कटे दिन? कैसे कटी रातें?
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें
पूछो ना साथिया जुदाई की बातें



Credits
Writer(s): Sameer, Milind Shrivastav, Anand Shrivastav
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