Suraj Dada

सूरज दादा हर रोज़ हैं आते
आ कर सब के वो मन को भाते
लुका-छुप्पी का खेल खिलाते
चारों ओर रोशनी फैलाते

पीली-पीली धूप दिखाते
रंग-बिरंगे फूल खिलाते
अँधेरे को दूर भगाते
सर्दियों में गर्मी दिलाते

शाम ढलते ही घर को जाते
जल्दी सुबह फिर से आ जाते
बिना तुम्हारे दिन नहीं होता
छुट्टी पर भी कभी ना जाते

सूरज दादा हर रोज़ हैं आते
आ कर सब के मन को वो भाते
सूरज दादा हर रोज़ हैं आते
आ कर सब के वो मन को भाते



Credits
Writer(s): Raj Jain, Rajesh Kumar Arya
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