Ghalat He Sahi

पत्थरों, पन्नों से दिल लगाते हो
और धड़कते दिलों पे ठोकर सजाते हो
ये कैसी मुहब्बत है? किस्से जताते हो?

तुम लोगों के दिलों पे नक़ाब हैं
शायद तुम्हारे दिल ही ख़राब हैं

मोहब्बत का सौदा फिर रस्मों को लाते हो
क्या तुम बनाते हो, क्या तुम दिखाते हो
ये कैसा खेल है, ख़ुद ही को हराते हो

महलों में रहते हो, फ़क़ीरी में जीते हो
दौलत से अपनी तुम क़िस्मत को सीते हो

अगर तुम्हारा सही तो मैं ग़लत ही सही
अगर तुम्हारा सही तो मैं ग़लत ही सही

मिटा दो मुझे तुम या रख दो दीवारों में
नज़र आऊँगा मैं लाखों, हज़ारों में
मोहब्बत हूँ मैं, कबतक छुपाओगे?



Credits
Writer(s): Bharat Chauhan
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