Bheegi Na Aankhein

भीगी ना आँखें और हंसते रहा मैं
हिस्से में चाहे फिर ग़म ही थे
कैसे ही चाहूँ मैं किसको ही चाहूँ
बेगाने अपने सनम भी थे

बरखा की रुत में भी प्यासे हैं बैठे
तृष्णा मिटेगी ये भ्रम भी थे

बदरिया की चली है फौज ये किसकी डगरिया पे
भिगोने को किसी का मन मगर प्यासे तो हम भी थे

ख़्वाबों में मेरे अब आता न कोई
सोता ही रहता जगाता न कोई
सपनों की दुनिया भी ख़ुशियाँ न देती
ना याद करता बुलाता न कोई

खाली ही पैमाना मेरा रहा है
उड़ते धुएँ से, महरम भी थे

बदरिया की चली है फौज ये किसकी डगरिया पे
भिगोने को किसी का मन मगर प्यासे तो हम भी थे

छू लूँ उचक कर जहाँ से सितारे
ऊँचे पहाड़ो पे जाना मैं चाहूँ
भूलूँ मैं हर ग़म मैं देखूँ नज़ारे
इतना ही चाहा, इतना मैं चाहूँ

साये का अपने तो मिलता सहारा
इतने तो मेरे, कर्म भी थे

बदरिया की चली है फौज ये किसकी डगरिया पे
भिगोने को किसी का मन मगर प्यासे तो हम भी थे

बदरिया की चली है फौज ये किसकी डगरिया पे
भिगोने को किसी का मन मगर प्यासे तो हम भी थे
हम भी थे
मगर प्यासे तो हम भी थे



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