Roz Kahan

चलो करते है गुफ्तगू चांदनी-सी आज कोई
ज़मी पर यूँ महताब उतरता है रोज़ कहाँ?

रहने दो पर्दा, होने दो दीदार-ए-हुस्न
नशा यूँ बेआब होता है रोज़ कहाँ?

मुदत्ते हुई दीदार हुए, तेरे रौशन मुख चंद्रमा के
बेकरारी से यूँ इंतज़ार होता है रोज़ कहाँ?

बहकने दो फिज़ाओ को, खुद को भी ना रोको आज
ज़माने से बेफिक्र दिल होता है रोज़ कहाँ?

रोक लो इन सांसे को, थम जाने दो वक़्त को आज
दरमियां फ़ासले खत्म हमारे, होते है रोज़ कहाँ?

लगा दो इल्ज़ाम जो है गवारा तुमको
खुद कचहरी मे पेश मुज़रिम होता है रोज़ कहाँ?



Credits
Writer(s): Hildegard Price, Rohit 'katib'
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link