Kuch Keh Rahi Thi Tum

कुछ कह रही थी तुम, मैं सुन नहीं पाया था
कुछ दूर चल कर मुझे ये ख़याल आया था
तुम्हारी आँखों ने शिकायत की थी कुछ तो
ना जाने क्यूँ मैं समझ ना पाया था

क्या कुछ रहा होगा मन में तुम्हारे
ये सोचता हुआ मैं वापस चला आया था
तुम्हारी मुस्कुराने की ये आदत
मुस्कुरा कर तुमने ना जाने क्या-क्या छुपाया था
मैं कोशिश कर रहा था तुम्हें समझने की कुछ इस तरह
हर वो क़िस्सा पढ़ रहा था जो कभी रहा अधूरा
हाँ, मैं कोशिश फिर करूँगा तुम्हें समझने की कुछ इस तरह
हर वो क़िस्सा पढ़ूँगा जो कभी रहा अधूरा
इक बार फिर तुमसे मिलने चला आया हूँ
कुछ फूल उस बाग़ के मैं साथ भी लाया हूँ
जहाँ पे तुमने कभी नज़ाकत से देखा था मुझे
ना जाने क्यूँ मैं समझ ना पाया था

क्या कुछ रहा होगा उस ख़्वाब में तुम्हारे
मुझे देख कर तुमने कभी जो सजाया था
तुम्हारी नज़रों ने इजाज़त दी थी मुझको
ना जाने मैंने क्या-क्या गवाया था

मैं कोशिश कर रहा हूँ तुम्हें समझने की फिर एक दफ़ा
हर वो क़िस्सा पढ़ रहा था जो कभी रहा अधूरा
हाँ, मैं कोशिश फिर करूँगा तुम्हें समझने की कुछ इस तरह
तुम्हारी नज़रों से पढ़ूँगा जो तुमने कभी ना कहा



Credits
Writer(s): Ashish, Mohit
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