Kaise

सैकड़ों उलझने है जहाँ में
हर उलझन का हल अब लाएं कैसे?
कुछ उलझे है खाना पचाने की कश्मकश में
कुछ सोचते है हम कुछ खाएं कैसे?

गए थे तालीम इंसा बनने की ख्वाहिश से
निकले तो सोचते है अब कमाएं कैसे?
एक वक़्त था जब गिर कर भी हँस दिया करते थे
अब वक़्त है की जीत कर भी मुस्कुराएं कैसे?

शिकायतें करता रहा वो खुदा मुझसे
उस से मिलने अब जाएं कैसे?
मांगने की फितरत रही सदा मेरी
सोचता हूँ उसे कुछ लौटाएं कैसे?

उम्र गुज़ार दी तेरी दस्तक की उम्मीद में
नई इक उम्र अब लाएं कैसे?
भूल गए उस खुदा को ख्वाहिश में तेरी
अब मेरी जान तुम्हें भुलाएं कैसे?
अब मेरी जान तुम्हें भुलाएं कैसे?



Credits
Writer(s): Alejandro Chandler, Rohit 'katib'
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