Katre Se Zara

कतरे से ज़रा वो बड़े क्या हुए
समंदर से उनके लिहाज़ हो गए
दो वक़्त देखने की हमने गुज़ारिश क्या की
वो महताब से आफताब हो गए

हुआ करते मिरे लिए गुलज़ार जो कभी
शख्श वो अचानक सहरा हो गए
थी ज़रा सी बात, बात बन्द जब हुई
रुसवा वो हमसे ख़ामख़ा हो गए

वो सपने, वो अरमा, वो आखरी इश्क़
झूठे वो वादे हज़ार हो गए
कुछ तो फर्क होगा शहर की आब-ओ-हवा में
देखते ही देखते वो बेवफ़ा हो गए

जब गए वो छोड़ बीच राह में हमे
खत्म सपने हमारे तमाम हो गए
थे व्याकुल हताश अब पाये किन्हें
सब धुंधले हमारे मुक़ाम हो गए

बयां करने को जिसे, ना थे शब्द कभी
ताकत-ए-कलम वो किस्से बेमिसाल हो गए
कहा था उसने ला-हासिल जिसे
लोग कहते है वो 'कातिब' कमाल हो गए

फिर मिला खत उसका आज बरसों के बाद
कहने लगे बदले उसके ख़याल हो गए
दिलाई उसने उन गुज़रे जज़्बातों की याद
जज़्बात जो कबके फ़ना हो गए

हो गई कुबूल जो मांगी दुआ थी
पूरे वो सारे ख्वाब हो गए
पर करेंगे क्या अब तुमको पाकर
जब खुद से ही हम खुद खफ़ा हो गए

छोड़ दो ज़िद अब एक हो जाने की
तन्हाई के अब हम यार हो गए
मिलेंगे तुझे अब किसी और ही जहां में
अभी दरमियां हमारे तेरे पाप हो गए
अभी दरमियां हमारे तेरे पाप हो गए



Credits
Writer(s): Melissa Lee, Rohit 'katib'
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